Monika garg

Add To collaction

लेखनी प्रतियोगिता -14-Aug-2023-# आ अब लौट चलें। (एकाकी जीवन विषय के अंतर्गत)

 मां ... मां  तुम रो कयो रही हो ,बताओ ना मां.."शिल्पी एकदम से हड़बड़ा कर उठी। कर्ण ने उसको झिंझोड़कर उठाया,"क्या हुआ है शिल्पी तुम नींद मे बडबडाते हुए क्यों रो रही हो?"

शिल्पी ने जब अपने आप को सम्हाला तो पाया वह वास्तव मे रो रही थी। कर्ण के बार बार पूछने पर शिल्पी बोली,"पता नही कर्ण मुझे क्यों अजीब सा लग रहा है मां के लिए।मोहित हर सन्डे मां से फोन पर बात करवाता था लेकिन दो रविवार से उसने हमेशा यही कहा कि मां कीर्तन मे गयी है बात नही हो सकती। मुझे कुछ अनहोनी की आशंका लग रही है।"
कर्ण उसे चुप कराते हुए बोला,"ये तुम्हारी मां के लिए चिंता है ।देखना ऐसा कुछ नही होगा तुम सो जाओ।"
यह कहकर कर्ण ने शिल्पी को सोने के लिए बोला।
शिल्पी लेट तो गयी पर उसे नींद नही आ रही थी।उसे बार बार भाभी स्नेहा का मां के प्रति जो व्यवहार था वो याद आ रहा था जब वह कनु को पहली बार लेकर भारत गयी थी।

शिल्पी के माता पिता मध्यमवर्गीय परिवार से थे ।पिता छोटी सी फल सब्जी की दुकान लगाते थे । मां बाप ने शिल्पी और मोहित को अपनी हैसियत से बाहर हैकर पढ़ाया पर शिल्पी तो पढ़ गयी मगर मोहित ज्यादा नही पढ़ पाया। शिल्पी की नौकरी अच्छी कम्पनी मे लग गयी और मोहित ने किराने की दुकान कर ली।
शिल्पी आफिस मे साथ काम करने वाले कर्ण को चाहने लगी थी तो माता पिता ने उसको अपने मनपसंद साथी के साथ शादी करने की रजामंदी दे दी। शादी के थोड़े दिनों बाद ही पिता का देहांत हो गया। मां और मोहित अकेले रह गये।इधर शिल्पी के पति की भी नौकरी विदेश मे लग गयी वह भी पति के साथ विदेश चली गयी । थोड़े ही दिनों बाद मां का फोन आया कि मोहित को एक लड़की पसंद है वो उसके दोस्त की बहन है मैने तो स्वीकृति दे दी वो खुश तो मै खुश।
शिल्पी प्रेगनेंट थी इसलिए भाई की शादी मे नही जा पाई।पर मां ने सब बताया फोन करके कि स्नेहा घर मे आ गयी तो मुझे अब तेरी कमी नही लगती। शिल्पी भी खुश हुई कि चलो मां जैसी चाहती थी वैसी बहू मिल गयी।
पर जब वह कनु को लेकर भारत गयी तो उसे नयी नवेली भाभी का मां के प्रति व्यवहार कुछ अजीब सा लगा। मां स्नेहा भाभी से डरी डरी रहती थी। स्नेहा शिल्पी से तो सही बोलती थी पर आगे पीछे मां कोई बात बोलती तो झिड़क देती थी। शिल्पी बार बार मां से पूछतीं कि मां तुम्हें कोई तकलीफ़ तो नही है।वो हर बार बस हंस कर टाल देती ,"बेटी तू मेरी चिंता मत कर बस तू अपनी ग्रहस्थी पर ध्यान दे‌।जिस की बेटी सुखी उसका जन्म सफल है इस दुनिया में। रही बात स्नेहा की तो एक पेड़ एक जगह से उखड़ कर दूसरी जगह लगता है तो उसे पनपने मे समय लगता है।"
शिल्पी भी आश्वस्त होकर भारत से लौट आयी।अभी दो महीने पहले ही उसकी मां का फोन आया कि अब मै तुम से बात मोहित के फोन से ही किया करूंगी।
लेकिन दो बार से मोहित भी मां से बात करवाने के लिए टाल रहा था।सुबह तो जब शिल्पी ने भारत फोन लगाया तो फिर मां से बात करवाने के लिए आना कानी देखी उसने मोहित की।अब तो उसका सब्र का बांध टूट गया।उसने पड़ोस मे रहने वाली गीता काकी जो उसकी मां की पक्की सहेली थी उसे फोन लगाया,"काकी आप ठीक हो ना ।पता नही मोहित का फोन नही लग रहा और भाभी का भी स्विच ऑफ आ रहा है मां से आप मेरी बात करा देंगी।"
इतना सुनते ही गीता काकी जैसे भरी बैठी थी वो बोली,"किससे बात कराएं बिटिया वो उस घर मे हो तब ना दोनों बेटे बहू ने वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा दिया बेचारी को ।मै स्वयं लाचार थी नही तो मेरे पास रह जाती।"
शिल्पी का खून जोर से उबालें मारने लगा।उसने तुरंत मोहित को खरी खोटी सुनाई और कहा तू मां को नही रख सकता तो मै रख लूंगी मै कल ही भारत आ रही हूं।
इधर गीता काकी शिल्पी की मां से मिलने आश्रम गयी और बताया शिल्पी का फोन आया था उसे सब पता चल गया है वो आ रही है तुम्हें लेने।
शिल्पी की मां मन ही मन कल्प रही थी कि अब जीवन की संध्या बेला मे अपनी धरती को छोडकर परदेस मे प्राण त्यागने पड़ेंगे।और बेटी के टुकड़ों पर पलना पड़ेगा।
नियत समय पर शिल्पी भारत पहुंच गयी जब एयरपोर्ट पर उतरी तो सामने मोहित और मां को देखकर चौंक गयी।वह झट से मां से लिपट गयी। मोहित गाड़ी लेने गया तो शिल्पी मां से बोली,"मां ये सब क्या?"
शिल्पी की मां ने जो बताया उसे सुनकर शिल्पी हैरान यह गयी उसने बताया,"बहू की भाभी ने भी उसकी मां को आश्रम मे भेज दिया था स्नेहा का रो रो कर बुरा हाल हो गया था उसे बस यही लग रहा था कि मेरे कर्मों की सजा मेरी मां को मिली है वह ही मोहित के साथ आकर मुझे आश्रम से ले गयी।और कल रात मैंने उसकी मां को भी अपने घर बुला लिया।इससे स्नेहा को मेरे प्रति और आदर हो गया।  मेरी बिटिया जीवन की ढल रही शाम में जब मैं एकाकी जीवन नहीं जी पाई और तू मेरे लिए दौड़ी चली आई तो मैं बहू की मां को एकाकी जीवन कैसे जीने देती। ंबेटी अगर सुबह का भुला शाम को आकर ये कहे की "आ अब लौट चले तो वह भूला नही कहलाता। 

शिल्पी जब कार मे बैठी जा रही थी तो उसकी आंखे धम थी ओर वह बार बार भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थी कि तूने सही समय पर भूलों को रास्ता दिखाया।  


   19
5 Comments

RISHITA

27-Aug-2023 08:28 AM

very nice

Reply

RISHITA

27-Aug-2023 08:28 AM

nice

Reply

Abhinav ji

15-Aug-2023 08:35 AM

Very nice 👍

Reply